
योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते
*पत्रकारिता को तारतार करते गुलाम पत्रकार*
ग्वालियर। आज जिस स्तर से पत्रकारिता अपनी विश्वसनीयता लोगों के बीच खोती जा रही है उसका मुख्यकारण वो गुलाम पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी कलम का सौदा कर नेताओं और अधिकारियों की पराधीनता स्वीकार कर ली हैं जँहा जाओ यह गुलाम पत्रकार अपने आकाओं की चरण वंदना करते नज़र आते हैं यह वो पत्रकार हैं जो अपने ही साथी पत्रकारों के हक को छिनने में लगे हुए है हाल ही में निकली दीवाली के विज्ञापनों के बंटवारे में इन गुलाम पत्रकारों ने जम कर धांधली की जिसका काल चिठ्ठा हम आपके सामने खोलने जा रहे हैं । जैसा कि आप जानते ही हैं कि एक ईमानदार पत्रकार के लिए विज्ञापन वो ऊर्जा है जो उसे वित्त पोषित करने का एक मात्र साधन है यह विज्ञापन वो नेता व अधिकारी उन्हें उनकी बात को जनमानस तक पहुचाने के एवज में देते है पर इसका मतलब कदापि यह नही होता कि एक पत्रकार उनकी कार गुज़रियों को नजरअंदाज कर देगा वह उसे भी पूरी सिद्दत के साथ जनता के समुख रखता है बस यंही से इन गुलाम पत्रकारों का खेल शुरू होता है यह उन नेताओं और अधिकारियों के कान भरते हैं और अपनी चाटुकारिता के बल पर उनके खास बन जाते है फिर शुरू करते है अपना खेल नेता व अधिकारियों से प्राप्त बजट में से पैसा बचा कर न केवल पत्रकारों का हक खाते है बल्कि उस नेता को भी धोखा देते है और अपनी जेबें भरते है । जिसके चलते ही ऐसे पत्रकार जो समाज के सरोकार की खबरे लिखते है वित्त पोषित होने से वंचित रह जाते है । वास्तविक रूप में जो आज पत्रकारों का ठेका लेकर बैठे हैं पत्रकारिता के सब से बड़े दुश्मन है इन्ही की वजह से न केवल जनता बल्कि वो नेता भी जो समाज की सेवा करना चाहते है वास्तविक पत्रकारिता से दूर ही जाते हैं । पत्रकारिता न केवल नेताओं की बात को जनता तक पहुचने का माध्यम है बल्कि जनता की आवाज और नेता पर अंकुश लगाने का माध्यम भी है ऐसे गुलाम पत्रकार ही पत्रिकारिता को निचले स्तर पर ले जा रहे है और मीडिया को बाजारू बना रहे है पत्रकारिता में आज समुद्र मंथन की जरूरत है और ऐसे गुलाम पत्रकारों को पत्रकारिता में बेनकाब करने की आवश्कता है जिस कि शुरुआत हमने कर दी है और आपको करनी चाहिए ।
*मंत्री से लेकर संतरी तक पत्रकार बने बैठे ठेकेदार*
ऐसे कई पत्रकार हैं जिनका खुलासा हम आज कर रहे है शुरुआत एक मंत्री के मीडिया प्रभारी व सलाहकार से करते है जो पूर्व में किसी मध्य्प्रदेश के चैनल में रिपोर्टर के रूप में कार्यरत थे और इनके शाम के किस्से बहुत चर्चित थे आजकल के पत्रकारों को सर्टिफिकेट देते फिरते है कि कौन असली है और कौन फर्जी । और मंत्री को उन पत्रकारों से दूर कर बैठे है जिन्होंने उनके बुरे समय मे उनका साथ दिया था
। मंत्री के बाद नंबर आता है सांसद का इन्होंने तो पत्रकारों के बीच ऐसा आदमी बैठाया है जो अपने आप को देव इंद्र के समान ही समझता है उसके लिए तो प्रिंट मीडिया ही एक मात्र मीडिया है बाकी सब फर्जी है हो भी क्यों ना साहब भी तो प्रिंट मीडिया से रहे है अब बारी आती काँग्रेस से विधायक की जिनके यँहा तो एक पंडित जी है जो स्वंम को ही विधयक समझते है विधायक शाहब भले ही कितना भी सम्मान पत्रकारों का करते हों पर मजाल है कि पंडित पत्रकार जी किसी को सम्मान दे जाएं आखिर यह स्वम्भू वरिष्ठ पत्रकार जो है भले ही इन्होंने पत्रकारिता में भाड़ नही झोंक हो पर चाटुकारिता की पी एच डी जरूर इनके पास है । जिसका ये भरपूर फायदा उठा रहे है और भी कई लोग हैं जो नगर निगम, gda स्वस्थ आदि विभागों में दलाली करते है हैं उनके बारे में फिर कभी चर्चा करेंगे । हां यदि हमे पत्रकारिता को बचना है तो सबसे पहले इन पत्रकारों के ठेकेदारों से पत्रकारिता को बचाना है
*परिवहन के बाद अब नेताओं से लेकर अन्य विभागो की दल्ला गिरी करते पत्रकार अपने चहितो को पहुंचाते लाभ वाकी जाये भाड में*
जी हां पूर्व में जिस प्रकार से परिवहन विभाग में ग्वालियर के कुछ पुराने बुड्डे ठुड्डे पत्रकार परिवहन विभाग की भड़वा गिरी से लेकर दल्ला गिरी करते थे और तथाकतिथ भ्रष्ट अधिकारियों के यहां उनकी चड्डियां और घरों के वर्तन तक धोया करते थे और साथ ही उन भ्रष्टों के यहां सतरंगी देशी विदेशी चमड़ियां तक सप्लाइ किया करते थे और उन भ्रष्टों के मूंह लगकर परिवहन विभाग से आने बाली सभी छोटे पत्रकारों के हिस्से के मलाई बांटने का कारोबार करते थे और इस कारोबार में में भी गरीब पत्रकारों का हिस्सा खाने का कार्य भी यही कुछ दल्ले पत्रकार करते थे लेकीन जब परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार खत्म हुआ तो यही दल्ले पत्रकार अन्य विभागों और नेताओ के ठेकेदार बन गये और हाल ही में निकली दिवाली में अन्य छोटे पत्रकारों का हक खा गये
*इमानदारी से काम करने बाले पत्रकारों मिलता है झुनझुना बैईमान ब्लैकमेलरों को मिलता है इनाम*
वास्तविकता में आज के दौर की सच्ची और इमानदारी बाली पत्रकारिता करने बाले पत्रकारों को भूके मरने के सिवा दूसरा कोइ रास्ता नही बचा है क्योकी ना उन पत्रकारों को उनके चैनल एंव प्रेस आफिस से ना तन्खा मिलती है ना कोइ सुविधायें वो आलम यह है की वो इमानदार पत्रकार दिन रात मेहनत करके अपना घर तक नही चला सकते और होली दिवाली जैसे त्योहारों पर उनको थोडा बहुत खर्चा पानी अगर उन्हे कही से मिलने की भी आशा रहती है तो कुछ दल्ले ठेकेदार बने ब्लैकमेलर बैइमान उनका हक छीछने के लिये घात लगाकर बैठे रहते है जिससे उन इमानदार सच्चाइ लिखने बाले पत्रकारो को सिर्फ और सिर्फ झुनझुना मिलता है वही बात की जाये ब्लैकमेलर और बैइमान पत्रकारौं तो वे हर सरकारी विभाग से लेकर कइ नेताओं के अंगो को सहलाते रहते है और फिर उन्ही की कमी पेशियों को हथियार बनाकर उनकी अर्नगल खबरे छाप कर उन्हे ब्लैकमेल करते है और जब कोइ सच्चा पत्रकार इनकी खबरों का काउंटर करता है तो वे बैइमानों की टीम उस इमानदार सच्चे पत्रकारों का नाम होली दिवाली में मिलने बाले विग्यापन को उन तक पहुंचने तक। नही देते और लिस्टों से उनका नामों निशा तक हटा देते और अगर यही चलता रहा तो देश के चौथे स्तंभ मीडीआ पर कोइ भरोषा नही करेगा और टोटल ब्लैकमेलर पत्रकार ही सच्चाइ लिखने बाले पत्रकारों को भूका मरने पर मजबूर कर देंगे
