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वाह री छापेमार कार्रवाई क्या पूरे परिवहन में अकेला सौरभ शर्मा ही भ्रष्ट है?बाकी सफेद चोर खुलेआम मुंह छुपाए। घूम रहे हैं इन पर शिकंजा।कब

 

 

 

 

 

योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते

*जांच एजेंसियों की यह कैसी जांच सौरभ शर्मा अकेला चोर बाकी सब नेक?*

ग्वालियर। भारतीय जांच एजेंसियों की भी बड़ी विडंबना है इनकी पूरी जांच एक आदमी के इर्दगिर्द ही रहती है अब देख लीजिए परिवहन विभाग के सौरभ शर्मा वाले मामले में 700 करोड़ की अपार सम्पति कमाने वाला सिपाही तो जांच एजेंसियों के रैडर पर है लेकिन उसी महकमे में रहे बड़े अफसर व मंत्री जांच से बाहर आखिर यह कैसे सम्भव है कि एक सिपाही अकूत की सम्पति कमा रहा था और इस विभाग के बाकी लोगों को कुछ दिखाई ही नही दे रहा था । यदि किसी तरह से ना चाहते हुए भी मान लें कि केवल सौरभ ही दोषी है बाकी सब ईमानदार तो थू है ऐसे बड़े बड़े आईपीएस और आईएस के लोगों पर जो इस विभाग को लीड कर रहे थे हमें शर्म आनी चाहिए कि हमारा देश ऐसे नकारा अफसरों के हाथ में है जिनसे एक सिपाही नही संभाल रहा है पर वास्तविकता में यह सच नही है असली सच हम आपको बताते है परिवहन विभाग प्रदेश के मालदार विभागों में से एक है और इसमें आयुक्त और अपर आयुक्त प्रवर्तन की पोस्ट मलाईदार पोस्ट कहलाती है और इस पोस्ट को पाने के लिए शुरू में भर भर के माल अपने राजनैतिक आकाओं को देना पड़ता है तब कँही जाके यह पोस्ट मिलती है फिर यँहा से शुरू होता है अवैध वसूली का धंधा । आयुक्त और अपर आयुक्त सिंडिकेट के साथ मिलकर के आमलोगों से वसुली करते हैं और हम यह यूँही नही कह रहे जिसको शक हो आज भी किसी भी आर टी ओ कार्यालय के बाहर जाके दलालों की गिनती कर ले पचासों दौड़ दौड़ कर आपके पास स्वतः ही आ जाएंगे पर यह सब केवल भारत की नामचीन एजेंसियों को नही दिखता उनको तो दिखता है केवल सौरभ शर्मा इनको सौरभ शर्मा को अरबपति बनाने वाले आई ए एस और आईपीएस नही दिखते आखिर दिखेंगे भी कैसे कोई बैचमेट है तो कोई जूनियर पर आप यह सोच रहे हैं कि यह सब यह एजेंसी वाले दोस्ती के लिए करते है तो वो भी गलत है यह तो अपने बाप को ना छोड़े तो दोस्त क्या चीज है ये सारा पैसे का खेल होता है सूत्रों की माने तो जैसे पत्रकारों की लिस्ट मार्किट में आई थी वैसी ही एक और लिस्ट है जिसमें इन एजेंसियों के बड़े अधिकारियों व कर्मचारियों के नाम के आगे छह अंक लिखे हुए हैं अब इनका क्या मतलब है यह हम पाठकों पर छोड़ते है जय हिन्द।

 

*सौरभ शर्मा पर मेहरवान अधिकारी*

एक सिपाही बिना अधिकारी की मर्जी के विभाग में कुछ नही कर सकता यह तो विभाग के अधिकारियों की मेहरवानी पर डिपेंड करता है कि उसका विभाग में किता रसूख है आइए जाने की आखिर इस सौरभ शर्मा पर किस अधिकारी की कितनी नेमत बरसी । शुरुआत करते है इनकी अनुकंपा नियुक्ति से जो तात्कालिक परिवहन आयुक्त की मेहरवानी से है जिन्होंने स्वस्थ विभाग में नौकरी करने वाले पिता के देहांत के बाद करुणा दिखाते हुए इन्हें सारे नियमो को ताक पर रख बिना किसी जांच के विभाग में भर्ती कर लिया फिर आती है बारी इन सजातीय भाईसाहब जो अपने को निज सचिव आयुक्त का बताते है और विभाग में इनकी भी सम्पति के काफी चर्चे हैं सैंकड़ों शिकायतों और लोकायुक्त ई ओ डव्लू के बाद भी इनका कुछ नही बिगड़ा आखिर इन्हें वो कला आती है जो ही हिंदुस्तान में बहुत लोकप्रिय है खूब खाओ और खूब खिलाओ । इन्ही से प्रेरित सौरभ शर्मा ने अपना कैरियर विभाग में शुरू किया और सिंडिकेट का पहला हिस्सा बन दो वैरियरों का ठेका लिया जब धीरे धीरे सौरभ विभाग में परवान चढ़ रहा था तभी प्रदेश में सरकार चली गई और कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए फिर जाने क्या तिगड़ी सेट हुई कि सौरभ सीधे परिवहन मंत्री की गोद मे जा बैठा और वँहा से शुरू हुआ इसका असली खेल वंहा पर वकील साहब मंत्री के क्लासमेट रहे और इसकी एक तगड़ी टीम बन गई जिसने सम्पूर्ण मध्य्प्रदेश की चेकपोस्ट ठेके पर ले लीं इसमें पूरा साथ दिया तात्कालिक आयुक्त ने जिनकी कोरोना काल मे बानी कोठी की चर्चा बहुत होती है जो उन्होंने अपनी ईमानदारी और मेहनत से बनबाई थी इस बीच कुछ लोगों को सौरभ शर्मा का यूँ आगे बढ़ते देखा नही गया तो फिर उन्होंने उसकी नियुक्ति वाली बात बाहर लोगों को बतानी शुरूकर दी जिसकी शिकायते अब विभाग लोकायुक्त eow तक पहुचने लगी जो सौरभ को परेशान करने लगीं फिर क्या था ऐसे में फिर एक संकटमोचक सौरभ का सामने आया जो तात्कालिक अपर आयुक्त प्रवर्तन थे उन्होंने अपनी कीमती सलहा सौरभ को दी और विभाग में हुई किसी वकील साहब द्वारा शिकायत के तीन दिन बाद ही सौरभ का इस्तीफा करवा दिया और बिना किसी जांच के उसे मंजूर भी कर लिया गया सुना है सौरभ के यँहा किसी काली डायरी की वजह से ये तात्कालिक अपर आयुक्त कुछ परेशान से भी नज़र आ रहे हैं खैर हमे क्या वो जाने और जांच एजेंशियाँ हम तो बस एक प्रश्न उठा रहे है कि यदि सौरभ शर्म दोषी है तो उसको बढ़ावा देने वाले यह आई ए एस आईपीएस और मंत्री क्यों रैडर पर नही हैं आखिर क्या मजबूरी है जो इनके लाखो सबूत नज़र के सामने होने के बाबजूद जाँच एजेंशियाँ इनको पाक साफ दिख रही है अब जांच एजेंसियां कुछ भी करे पर आम जनता को मूर्ख न समझे हमे देख भी रहे हैं और समझ भी रहे हैं कि क्या खेल चल रहा है

*क्या परिवहन विभाग में सिपाहियों के पास ही है काली कमाई बाकी आईपीएस एवं आरटीआई पर ईमानदारी और मेहनत की कमाई होगी शायद*

परिवहन विभाग में पूर्व मैं पदस्थ रहें ट्रांसपोर्ट। कमिश्नर से लेकर एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एवं तथाकथित आरटीआई जिनकी ना शायद सैकड़ों एकड़ जमीन कुछ पत्रकारों ने नहीं दवा ली है इनकी कमाईयों को देखकर। तो यह लगता है कि यह बेचारे सफेदपोश ईमानदार। हरिश्चन्द्र के नातेदार बनकर अरबों रुपए की मलाई चाट कर ऐसे साधे बन रहे हैं जैसे कि पाँच सौ रुपये का नोट देखा ही नहीं है वाह साहब वाह क्या कार्रवाई है? क्या जांच एजेंसी है अरे सफेद चोरों सूत्र तो बताते हैं की।चाहे लोकायुक्त? हो या फिर ईओडब्ल्यू इस परिवहन का माल? तो सबने ही मिलकर खाया है जांच एजेंसियों को तो अपने अपने चेहरे सुबह उठकर आइने में देख लेना चाहिए अपने भ्रष्टाचारी चेहरे।दूसरों से तो छुपा लोगे लेकिन खुद की नजर में सबसे बड़े चोर।अगर वाकई भारत देश में सत्यता है तो फिर करो ठोक कर। इन सभी की जांच सीबीआई के हवाले और सीबीआई को निष्पक्ष होकर किसी भी राजनीतिक दबाव में न आकर इस पूरे भ्रष्टाचार की जाँच कराना चाहिए तब जाकर दूध का। दूध पानी का पानी हो जाएगा। हमारा, क्या है? हम तो एक पत्रकार हैं जो कि पिछले ग्यारह महीनों से सत्य। की राह पकड़कर भ्रष्टाचारियों का दम से खुलासा कर रहे हैं क्योंकि हमारे नाम के आगे ही हम सत्य मेव जयते लगाते हैं। अगली खबर में हम उन ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एवं ट्रांसपोर्टर एडिशनल कमिशनर एवं कुछ आरटीआई एवं टीएसआई की औकात सबूत सहित खुलासा करेंगे सत्यमेव जयते

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