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एक बोतल के लिये साला कुछ भी करेगा भोंपू मीडीआ तथाकथित दल्ले पत्रकारों की आखिर ये कैसी पत्रकारिता?

 

 

 

 

 

योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते

 

*इन्दरगंज टी आई और सुरा प्रेमी दरुये पत्रकारों ने फँसाया एस आई अत्तर सिंह को सूत्र ?*
ग्वालियर । शहर की पुलिस के अंदर भ्र्ष्टाचार इस कदर हावी है कि वो इसे चालू रखने के लिए अपने साथी कर्मचारी की भी बलि चढ़ाने से परेहज नही करते इसमें इनका साथ इनके सूरा प्रेमी दरुये दल्ले पत्रकार भी बढ़चढ़ कर देते हैं और दें भी क्यों ना तीन फूल वाले साहब इनकी रात की पार्टी का इंतजाम जो करते हैं । माजरा यूँ है कि शहर के इन्दरगंज थाने का एक मामला आजकल भोपाल पुलिस मुख्यालय तक बड़ी चर्चा में है । कुछ कथित सूरा प्रेमी पत्रकारों ने एक एस आई साहब को टी आई साहब के कहने पर इतना बदनाम किया कि बेचारे को सस्पेंड होना पड़ा एक कथित वीडियो के आधार पर कई खबरे लिखी गईं जो किसी भी पत्रकार के पास नही था केवल अपने चहेते टी आई साहब के कहने पर उसे वायरल मान लिया गया और खाकी को बदनाम करने की खबरे लिखी गई फिर उन्हें सुनियोजित तरीके से वरिष्ठ अधिकारियों पर दबाब बनाने के लिए प्रयोग किया गया ताकि टी आई साहब की आंखों में खटक रहे अत्तर सिंह को थाने से हटाया जा सके । सूत्रों की माने तो इस खबर के एवज में पत्रकारों को शराब के साथ चखना और भोजन भी बहुत मिला । पत्रकारिता की गरिमा को तारतार करने वाले ये कुछ अंगूठा छाप पत्रकार केवल वसुली के लिए ही पत्रकार बने है । इसलिए तो जिस त्रिशूल को उखाड़ने की बात इन्होंने लिखी है उसे देखने तक की जहमत नही उठाई थाने में गड़ा वो त्रिशूल खबर लिखे जाने तक जस का तस गड़ा हुआ है और तो और यह सूरा प्रेमी पत्रकार टी आई साहब के रहमो कर्म से इतना दबे हुए है कि इन्होंने सीसीटीव फुटेज भी देखना उचित नही समझा जिस में पूरी वारदात कैद हुई थी । जो सूत्रों के अनुसार एस आई की बेगुनाही का सबूत दे सकती थी पर इनको क्या रात की पार्टी का इंतजाम करने वाला महत्वपूर्ण है।
*सट्टे के कारोबार को सरंक्षण है मुख्य वजह साजिस का*
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि टी आई साहब को अपने ही एस आई के खिलाफ साजिश रचनी पड़ी तो इसमें सूत्र बताते है कि एस आई अत्तर सिंह कुशवाह पूर्व में आर्मी में अपनी सेवाएं दे चुके है और वे निहायती ईमानदार किस्म के पुलिस वाले है बस ये ही उनके साथियों को खटक रहा था और जब उन्होंने एक सट्टे संचालक पर अपना शिकंजा कसा तो उन्ही के थाने के लोग उनके खिलाफ हो गए और पूरी साजिश को अंजाम दे दिया गया जिसमें दरुये पत्रकारों ने भी भरपूर सहयोग किया सट्टे का यह कारोबार बहुत पुराना है और यदि यह कहा जाए कि इसको थाने के कुछ लोगों का सरंक्षण भी प्राप्त है और मोटी वसुली भी आती होगी तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। अब जिस तरह बिना तथ्यों को परखे केवल एक वीडियो के आधार पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने कर्मचारी को सस्पेंड कर दिया है वो जायज नही है और इससे एक ईमानदार अधिकारी के मनोबल पर जरूर फर्क पड़ा होगा।

*सूरा प्रेमी पत्रकार सूरा के लिए कुछ भी करेंगे*
ग्वालियर शहर की एक बड़ी विडंबना है यँहा करीब 2500 पत्रकार वो भी सबसे बड़े वाले हैं जो केवल पत्रकारिता रात की पार्टी के लिए ही करते है वो आपको शहर के बीचों बीच दो तीन ठिकानों पर अक्सर रात को शराब पीते मिल जाएंगे और कुछ तो सुबह से ही पीना चालू कर देते है ऐसे ही पत्रकारों को पुलिस के कुछ भ्रष्ट टी आइयों ने अपना गुलाम बना रखा है वो इनसे ही अपने रास्ते के कांटे निकलवाते हैं और इसके एवज में इन्हें भी हड्डी मिल जाती है थाना प्रभारी ना केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर दबाब बनाने के लिए इनका प्रयोग करते है बल्कि सट्टे जुए अवैध शराब व अन्य मामलों में भी दलाली करवाते है यह पत्रकार पत्रकारिता का बदनुमा दाग तो हैं ही साथ ही समाज के लिए भी बहुत घातक है जल्द ही इनका भी खुलासा किया जाएगा फिलाल तो वो जबाब देने के लिए तैयार रहे कि आखिर त्रिशूल उखड़ा कैसे?
*माल खाये वरिष्ट निलंवित होऐ अधिनस्त*
जी हां बात में दम है क्योकी हम सच्चाई छिपाते नही सीधा उधडते है थानों पर डायल 100 में पदस्थ छोटे स्तर के पुलिस कर्मचारी हमेशा से ही बली का बकरा बनते नजर आ ते है और मीडीआ की सुर्खियां बन जाते है लेकिन वास्तविकता किसी को पता नही आखिर छोटे पद पर पदस्थ पुलिस कर्मी ही क्यों फसते है जबकी माल उच्च स्तर के अधिकारियों तक जाता है और उन पर कार्यवाही क्यो नही की जाती? सूत्र तो बताते है की जब भी कोइ छोटे पद पर पदस्थ पुलिस कर्मी थाने एंव चैकिंग पाइंट पर पदस्थ होता है तो वह अपनी मर्जी से अबैध बसूली नही करता क्योकी सरकार उनको पर्याप्त तन्खा दे ती है जिससे उस छोटे पुलिस कर्मी का गुजारा आराम से हो जाता है लेकिन अब बात उन पेट बालो की जिनकों प्रतिदिन 5 स्टार होटल से लेकर हाइप्रोफाइल मंहगी मसाजे लगती है और सुविधाओं को पाने के लिये शायद उनकी तन्खा कम पढ जाती है और तन्खा कम पढे या जादा लेकिन सौंख बढी चीज है और इसी सौंख को पूरा करने के लिये मोटे पेट बाले वरिष्ट अधिकारी अपने नीचे के अधिनस्थों को इशारा देते है की (*करों खेल चलाओ अवैध वसूली के रेल*) और अगर जो ईमानदार छोटे पद पर बैठा पुलिस कर्मी इस इशारे को नही समझ पाता उसे पुलिस लाइन या किसी वरिष्ट के घर का दरबान बना दिया जाता है और जो इस इशारा का पालन करता है उसे हल्की फुल्की पंजीरी मिलती रहती है और इसी पंजीरी के चक्कर में वे आये दिन निलंबित होते नजर आते है बैसे हमारा क्या हम तो सच्चाई बता रहे है और इस खबर से कुछ भ्रष्ट पुलिस बाले भ्रष्ट दरुये पत्रकारों को मिर्ची लगना तय है लेकिन हमें फर्क नही पढता क्योकी ये माननीय मोदी एंव मोहन सरकार है और यहां भ्रष्टाचार नही चलेगा जय हिन्द सत्यमेव जयते

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