
योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते
*दीवाली पर सिक्कों की खनक की चाह में सागर परिवहन कार्यालय में पँहुचे टुच्चे पत्रकार*
सागर। दीवाली आते ही जाने कंहाँ से टुच्चे पत्रकारों की फौज विभागों में नज़र आने लगती है चंद सिक्कों की खनक सुन नाचते हुए ब्लैकमेलर पत्रकार विभागों में मुजरा करने पँहुच जाते है इनका बस एक ही सपना होता है वो मनी मनी । इस पैसे के लिए यह पत्तलकार किसी भी हद तक जा सकते है यहाँ तक कि यदि इनको फेक न्यूज़ भी बनानी पड़े तो ये उससे भी गुरेज नही करते
ऐसा ही एक मामला सागर जिले के परिवहन कार्यालय से सामने आया है जिसमे कुछ ब्लैकमेलर पत्रकार सीने में चेकपोस्ट बन्द होने का दर्द लिए परिवहन कार्यालय पँहुच गए और बाहर खड़े लोगों को दलाल बता कर खबर बनाने लगे न तो किसी अधिकारी से पुष्टि कराई ना किसी कर्मचारी से बस लगे अपनी पत्रकारिता दिखाने । जब से चेकपोस्ट बन्द हुई है तब से ही ये दो-दो कौड़ी के पत्रकार परिवहन कार्यालयों के रुख कर रहे हैं और उस पर दीवाली का माहौल की वजह से इनकी तादाद भी चौगनी हो गई है अब ये ब्लैकमेलिंग की मलाई चाटने के लिए जिला परिवहन अधिकारी के विरुद्ध अनाप शनाप बक रहे है जिसका न तो कोई सबूत है नाही कोई गवाह बस यूँही बीन सी बाजए जा रहे हैं हाँ पर मकसद है वो भी ब्लैकमेलिंग का । पर जब से प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री मोहन यादव ने संभाली है और उन्होंने निडर निर्भीक अधिकारी को विभाग की कमान सौंपी है तब से द
यह दो टके के टुच्चे पत्रकार बिलबिला रहे है और कुछ न कुछ हरकत कर मोहन सरकार पर दबाब बनना चाहते है पर वो कहते हैं ना कि जब लीडर निडर हो तो उसके सिपाही भी निर्भीक हो जाते है कुछ इस तरह ही सागर के परिवहन अधिकारी ने इन टुच्चे और दो कौड़ी के पत्रकारों का सामना बड़ी बेबाकी से किया और उनके लगाया आरोपों को सिरे से नकार दिया । अब यह पत्रकार मुंह फुलाये पुर सागर में घूम रहे है सूत्रों की माने तो इन्होंने एक शिकायत अपर आयुक्त परिवहन को भी दी है पर अब ना तो परिवहन का कोई अधिकारी इनके चंगुल में फसने वाला है ना ही मोहन सरकार जितना चिलाना है चीला लो अब कोई फर्क नही पड़ता परिवहन विभाग में रेवड़ियाँ बटनी बन्द हो गई है और यह अब किसी भी तरह नही चालू होगी । मेरी तो ऐसे ब्लैकमेलर पत्रकारों को सलाह यही है किसी दीवली लेने कँही और जाओ परिवहन के दरवाजे आपके लिए बंद है ।
*क्या है परिवहन विभाग में एजेंट का सच*
पूर्व में जब सारा काम मैनुअली होता था और आदमी भी ज्यादा पढ़ा लिखा नही था तब हर विभाग के बाहर कुछ पड़े लिखे बेरोजगार , लोगों की मदद के लिए आवेदन भरने का काम किया करते थे और विभागी प्रक्रिया में सहयोग करते थे फिर धीरे धीरे यह प्रथा पूर्व की सरकारों की उदासीनता के चलते कुरीति में बदल गई और इसका नाम दलाली पड़ गया । इस प्रथा से परिवहन विभाग भी अछूता नही रहा और पूर्व अधिकारियों की सह की वजह से यह दलाली परिवहन विभाग में खूब फली फूली फिर इसके नकरात्मक प्रभाव जनता के बीच दिखाई देने लगे जिसे हाल ही में कुछ कठोर निर्णयों के द्वारा हटाया जा रहा है और विभाग में सारी सुविधाएं ऑनलाइन की जा रही है एन आई सी द्वारा बनाये वहान पंजीयन पोर्टल और घर बैठे लर्निंग लाइसेंस अप्लाई करने की वजह से अब दलाली प्रथा पर अंकुश लगता जा रहा है धीरे धीरे और सुधरों को भी विभाग मंजूरी दे रहा है जिसके चलते दलाल
हतोत्साहित है और अपने ब्लैकमेलर पत्रकारों के साथ मिलकर रोज नए नए स्वांग रच रहे है इसी का उदाहरण है सागर परिवहन कार्यालय की तथाकथित ब्लैकमेलर पत्रकारों की खबर । परिवहन मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी अब बहुत अच्छे से इन दल्ले पत्रकारों को समझ चुके है और वो इन्हें कोई भाव नही देते
*ये कैसी पत्रकारिता जो दलाली जादा लगती है*
आखिर अब हर किसी के जहन में ये सवाल खडा होता है की आखिर ये कैसी पत्रकारिता की सिर्फ परिवहन विभाग में ही अपने पत्रकारिता के झंडे गाड़ने के लिये कुछ तथाकथित पत्रकार अपनी पत्रकारिता कम ब्लैकमेलिंग गिरी करने परिवहन विभाग के ही चक्कर काटते रहते है और रही बात परिवहन विभाग की तो तो इस विभाग में आरोप लगना आम बात है लेकिन आज की स्थति में देखा जाये तो परिवहन विभाग के 90% कार्य आज आनलाइन हो चुके है लेकिन फिर भी जाने ये पत्रकार परिवहन विभाग की उल्टी सीथी खबरें निकाल कर किसी भी इमानदार आरटीओं अधिकारी को ब्लैकमेल करने से वाझ नही आ रहे लेकीन वहीं देखा जाये तो दिवाली के सिर्फ 10 दिन ही बाकी रह गये और तो इन ब्लैकमेलर पत्रकारों को परिवहन विभाग के आस पास घूमना लाजमी है और वही दूसरे अन्य विभागों की बात की जाये तो ये तथाकतिथ पत्रकार अन्य विभागो में जाने से क्यूं कतराते है और इस बात से ऐसा प्रतीत होता है की अन्य विभागो में बैठे अधिकारी साक्छात हरिशचंद के चेले हो
