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परिवहन सिंडिकेट का बिगड़ा खेल । बौराये दल्लें पत्रकार लिख रहे बेतुके लेख*


ग्वालियर। जब तक परिवहन में चेकपोस्ट चल रही थी और खूब अवैध वसूली चल रही थी तब तक परिवहन विभाग के खिलाफ एक लेख मिलना भी मुश्किल था परन्तु जब से मुख्यमंत्री के आदेश के बाद सख्ती से विभाग ने नई नीति लागू की है तब से ही कुछ सिंडीकेट समर्थित पत्रकार की अन्तरात्मा जग गयी है और वो ढूंढ-ढूंढ कर खबरे रोपित कर रहे हैं अब इनसे कोई ये पूँछे की जब परिवहन चौकियों पर निजी कर्मचारी पुरानी व्यवस्था के चलते ट्रक ड्राइवरों व बस चालकों से बदसलूकी करते थे तब इनकी पत्रकारिता की कलम किस बोझ के नीचे दब गई थी खैर हमारा मकसद ही ऐसे लोगों को बेनकाब करने का है । इसलिए ये मुहिम चला रखी है । आधी बात बता कर ढिंढोरा पीटने वाले पत्रकार बड़ी ही साफ़गोई से खबर को कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ लिखते है और वास्तविक दोषी को बचा लेते है अभी हाल ही में प्राइवेट बस ऑपरेटरों और पर्यटन परमिट को लेकर सवाल उठाए गए जिसमें विभाग के कुछ अधिकारियों पर बिना किसी पुख्ता सबूत के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए । जो कि आधारहीन है ।

*कुण्ठा से भरे दल्ले पत्रकार कर रहे है परिवहन अधिकारियों को बदनाम*
परिवहन विभाग में रेवड़ियां बंद हो जाने के बाद शहर की बड़ी बड़ी सोसाअटियों मंहगे घरोंमें रहने वाले ब्लेकमेलर पत्रकार कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के सम्बंध के तार जोड़ने वाली कहानी बता कर आधारहीन सनसनी फैलाना चाहते हैं जो ये भूल जाते हैं कि उनपर भी किसी खक्खा सेठ की कृपापात्र होने का आरोप लगता रहा है जिसका भरपूर फायदा भी कइ संसथान एंव कॉलेज में उठाया गया है। खैर हमे क्या करना ये तो उनका अपना निजी विषय है कि वो अपनी लेखनी से गरीबों की आवाज उठाते है या किसी की चरण वंदना करते हैं

*जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरे के घरों पर पत्थर नही फेंका करते*

राजकुमार का ये डायलॉग आज उन ब्लेकमेलर दल्ले किस्म के पत्रकारों पर सच प्रतीत होता है जो परिवहन विभाग पर आज कल खूब लिख रहे हैं पूर्व में भी इन पत्रकारों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल रहे है जो उनकी ईमानदारी को इंगित करते हैं
पूर्व परिवहन आयुक्त मुकेश जैन के समय में बहु चर्चित कई दल्ले पत्रकारों की लड़ाई ने तात्कालिक समय मे खूब सुर्खियां बटोरी थी और खुल कर लोग के सामने एक दूसरे के ऑडियो वायरल किये थे जिससे विभाग में हो रही बंदरबाँट का काला सच उजागर हुआ था ऐसे कई ऑडियो आज भी इंटरनेट पर पड़े हुए है जिसे कोई भी जाकर सुन सकता है हम जिस सिंडिकेट के गठजोड़ की बात करते है वो भी इन वायरल ऑडियो से स्पष्ट हो जाता है । पर बस यह लोकायुक्त और eow जैसी संस्थाओं को ही नही दिखता । खैर हमारा तो बस इतना कहना है कि हमेशा दूसरों की पोल खोलने का दावा करने वालों की भी बहुत सी पोल हैं बस खुलने भर की देर है।
पूर्व सिन्डीकेड परिवहन अधिकारियों को दल्ले पत्रकारों ने खूब कराई चमडे के जाहजों की सैर
कहने को इस बात में कोइ दो राय नही है लेकिन आज ग्वालियर शहर में ऐसे ऐसे लोग पत्रकारिता जगत में कार्यरत है जिनके दादा परदादा चमडी की दलाली किया करते थे और आज भी उन्ही के संस्कारों को प्राप्त कर कइ पत्रकार अपने आकाओं के लिये भोपाल एंव दिल्ली जैसे बढे शहरों में चमडे के जहाज तक चलवा रहे है और जो भी अधिकारी इन रंगीन तितलियों के रंग में मदहोश हो जाते है वे इन दल्ले पत्रकारों के बाप बन इन्हे लाखों रुपयें महिने दिया करते है और तो और सूत्र बताते है की इन दल्ले ब्लेकमेलरों के जाल में जो जो परिवहन अधिकारी फसें है वे ही इन्हे विभाग की कमिंया बताने और अपने विभाग के साथ गद्दारी करने पर मजबूर है ।।

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