
योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते
*ऐसे कैसे हासिल होगा , परिवहन विभाग का 5300 करोड़ का लक्ष्य*
मध्यप्रदेश के कमाऊ मंत्रालयों में से एक परिवहन विभाग ने पिछले वर्ष के 4800 करोड़ के टारगेट को 95 प्रतिशत प्राप्त करने के बाद अपना इस वर्ष का लक्ष्य 5300 करोड़ का रखा है परंतु मुख्यमंत्री के परिवहन को भ्र्ष्टाचार से मुक्त करने के प्रयास में गुजरात की तर्ज पर बनाई गई नीति के एकदम से लागू कर देने की वजह से अब इस लक्ष्य को हासिल करना आसान नही रहा है वैसे तो परिवहन का मुख्य रेवन्यू क्षेत्रीये कार्यालयों से प्राप्त होता है , पर लक्ष्य प्राप्ति में चेकपोस्टों की भी एक अहम भूमिका है जिसमें बिना परमिट के प्रदेश में घुसे भारी वाहनों से टैक्स वसूला जाता है और प्रदेश को रेवन्यू बढ़ाया जाता है । जिन चालानी कार्यवाहियों को लेकर हायतौबा मचाई जाती है वास्तविक रूप से उसके माध्यम से 90 से 100 करोड़ का ही राजस्व प्राप्त होता है । मैदान में अपने आला अफसरों के मार्गदर्शन में मैदानी कर्मचारियों ने इस टारगेट को पूरा करने के लिए कमर कस ली है और सीमित संसाधनों व फोर्स की कमी के बाबजूद भारी बरसात में बिना किसी शेड के वो लोग जान हथेली पर लेकर काम कर रहे है पर जैसा कि विदित है कि किसी भी नई व्यवस्था के लागू होने के साथ ही कुछ अव्यवस्था भी फैलती है ऐसा ही कुछ स्तिथि परिवहन विभाग में आजकल देखने को मिल रही है जिसका भरपूर फायदा ट्रांसपोटर्स उठा रहे हैं फोर्स की कमी के चलते व ट्रंस्पोर्टरों द्वारा जानबूझकर अनभिज्ञ बनकर मैदानी कर्मचारी पर दबाब बनाया जा रहा है ऐसी ही घटना सेंधवा वैरियर पर एक वाहन चालक द्वारा की गई बदतमीजी की भी आई है।
*ट्रांसपोर्ट और परिवहन सिंडिकेट मिलकर कर रहे है राजस्व की हानि*
विभाग के कुछ कर्मचारी जो ठेके पर चेकपोस्ट लेते थे और ट्रांसपोर्टरों के बीच की जुगलबंदी इस तरह का भ्रम फैला रही हैं कि प्रदेश में आरटीओ बन्द हो गया है और किसी भी तरह की चेकिंग अवैध वसूली है जिसका नतीजा यह हुआ है कि बीते सोमवार को सेंधवा पर चैकिंग के दौरान कागज मांगे गए तो ट्रक चालक भड़क गया और कागज दिखाने की मना कर चैकिंग कर रहे स्टाफ से भिड़ गया जिसका वीडियो वायरल हुआ था । जब उस ट्रक की जांच की गई तो पता चला कि उस ट्रक का परमिट ही नही था और वो चालक बिना टैक्स कटाये ही मध्यप्रदेश से गुजर जाना चाहता था इसलिए उसने दबाब बनाने के लिए यह सब किया था । अब जमीनी परिवहन कर्मचारियों के साथ समस्या ये है की वो गाड़ी से चैकिंग तो कर रहे हैं पर उनके पास कोई भी ऐसा संसाधन नही है स्पॉट पर जिससे वो गाड़ी का नंबर डाल कर चेक कर सकें कि गाड़ी का परमिट ,फिटनेस , प्रदूषण, भार सही है कि नही । जिसके एवज में कर्मचारियों को वाहन चालकों से ही कागज मांगने पड़ते है जिसका फायदा यह ट्रक चालक उठाते है और कागज नही दिखाने के लिए लड़ते है और दबाब बनाते हैं और परमिट छुपा कर टैक्स काटाने से बच जाते है जिससे सीधे तौर पर सरकार के राजस्व का नुकसान हो रहा है और ट्रांसपोर्टरों की मौज हो रही है । ट्रंस्पोर्टरों द्वारा गाड़ी के डालों को मॉडिफाई कर दिया जाता है जो पूर्णतः नियम विरुद्ध है जब इन पर कार्यवाही की जाती है तो ट्रांसपोर्ट यूनियनें होहल्ला करने लगती है और इसे परिवहन विभाग की वसुली बताकर सरकार व प्रदेश के सामने विभाग की गलत छवि को पेश करती है हमारा तो मुख्यमंत्री व मंत्री परिवहन विभाग से अनुरोध है कि ऐसी किसी भी तरह की अनर्गल बातों पे ध्यान न दिया जाए और परिवहन अधिकारियों को दबाब मुक्त किया जाए जिससे ईमानदारी से काम हो सके और प्रदेश के राजस्व में बढ़ोतरी हो सके ।
*परिवहन के मैदानी कर्मचारी के सामने है कई समस्याएँ*
परिवहन विभाग के जमीनी कर्मचारी विभाग के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी लगन और मेहनत से काम कर रहे है एकदम से लागू हुई नई व्यवस्था की वजह से जमीनी कर्मचारियों के सामने कई दिक्कतें भी खड़ी हो गयी है सूत्रों की माने तो प्रदेश के कुछ बड़े इंट्री पॉइंट खबासा मुरैना सेंधवा नयागांव हनुमान आदि से पांच से आठ हजार गाड़ियां प्रतिदिन गुजरती है जिन्हें चेक करने के लिए मात्र चेकिंग पॉइंट काफी नही है इसके लिए पूर्ण व्यवस्था की आवश्यकता है जैसाकि पूर्व में कम्प्यूटर ऑपरेटर और अन्य स्टाफ हुआ करता था ताकि कार्य को अधिक प्रभावी तरीके से किया जाए तथा प्रदेश के लिए अधिक से अधिक राजस्व जुटाया जा सके साथ ही मात्र एक जीप से बड़े बड़े ट्रकों को रोकना भी पूर्णतः सम्भव नही है तथा इसमें खतरा भी बहुत है यदि चैकिंग के दौरान कोई ओवर लोड वाहन है तो उसे जांचने की भी कोई व्यवस्था नही होती है जिससे उसके चालान काटने में परेशानी होती है मध्यप्रदेश में मौसम की विविधता के चलते चौबीसों घंटे बिना शेड के काम करना भी अपने आप मे एक चुनौती है अतः प्रदेश के अधिक व्यस्त इंट्री पॉइंटों वाले चेकपोइंटों पर शेड व अन्य सुविधाओं की भी आवश्कता है अतः शासन को यूँही अक्षरशः गुजरात मॉडल को लागू नही कर देना चाहिये बल्कि उसको मध्यप्रदेश के परिपेक्ष्य में जरूरी बदलाव के बारे में भी एक दफा और विचार कर लेना चाहिये कँही ऐसा ना हो कि गुजरात मॉडल बनाने के चक्कर मे परिवहन विभाग हासिये पर चला जाये
*झूटी खबरे बायरल करना कहीं बन जाये दल्ले ब्लैकमेलर पत्रकारों की गले की फांस*
हमने अक्सर देखा है परिवहन विभाग में पदस्थ अधिकारियों एंव कर्मचारियों की कइ खबरे सोशल मीडीआ पर बायरल करना भी एक नया ट्रेन्ड बन गया है आये दिन कुछ दल्ले ब्लैकमेलर टायप के पत्रकार जो पूर्व में परिवहन विभाग लाखों रुपये की मलाई खाया करता था लेकिन जैसे ही इस परिवहन विभाग में पूर्व में चले आ रहे भ्रष्टाचार के ऊपर प्रदेश के मुख्यमंत्री एंव परिवहन मंत्री परिवहन कमिश्नर एंव प्रवर्तन कमिश्नर ने अपना सिंकजा कसा है तब से भ्रष्टाचार जीरो लेवल पर पहूंच गया है और इस परिवहन विभाग के समस्त कर्मचारी एंव स्टाफ अपना काम इमानदारी के साथ कर रहे है लेकिन शायद ये बात उन तथाकथित दल्लों ब्लेकमेलर पत्रकारों को हजम नही हो रही और वे हर दिन किसी ना किसा बहाने से परिवहन चैकपाइंट एंव वहां पदस्थ स्टाफ की झूटी बीडीओं बनाकर ट्रक चालको की झूटी बाइट लेकर उन्हे बायरल करके फिरते है क्योकी परिवहन चैकपाइंटों का आलम यह है की वहां मौजूद परिवहन अमला इस समय अपने आला अधिकारियों के निर्देशन पर सिर्फ चालानी कार्यवाही एंव नियमनुसार चैकिंग कर रहा है और राजस्व को बढाने के लिये प्रयास रत है लेकिन अब सूत्र तो बताते है इन दल्लें ब्लेकमेलर पत्रकारों के पास अब कोइ धंधा नही बचा है तो वे आये दिन इस प्रकार की भ्रामक खबरे बायरल करते फिरते है और परिवहन विभाग के स्टाफ को आये दिन परेशान करते है लेकिन आपको बता दे की जानकारी भोपाल से है इस प्रकार के ब्लेकमेलर पत्रकारों की लिस्ट भोपाल में बन गइ है और उन्हे ब्लेकलिस्टेड करना शुरू कर दिया है और सूत्र तो यह भी बताते है इन ब्लैकमेलरों की फर्जी झूटी खबरों को परिवहन विभाग किनारा कर अपने सासकीय कार्य करने में लगा हुआ है और एसे ब्लेकमेलर पत्रकारों पर सरकार जल्द बढी कार्यवाही करने की योजना बना चुकी और अगर ये ब्लैकमेलर पत्रकार समय रहते नही सुधरे तो शायद इनकी झूटी खबरे इनके लिये गले की फांस जरूर बन जायेगी
सत्यमेव जयते
