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ऐसा कोइ सगा नही जिसे दल्ले ब्लैकमेलर पत्रकार ने ठगा नही चमडे के जाहजों से तान दिये आलीशान महल

 

 

 

 

 

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योगेश शर्मा नाम ही काफी है सत्यमेव जयते

बिकी कलाम से लिखी खबर*
*लूट में हिस्सा ,लुटेरे की मदद*
*सिंडिकेट के दल्ले पत्रकारों का बस यही है किस्सा*
ग्वालियर। परिवहन विभाग से पूर्व में लाखों रुपए की रेवड़ियाँ प्राप्त करने वाले पत्रकार आजकल उस देशी कहावत को चरित्रार्थ कर रहे जिसमें कहा जाता है कि सूप तो सुप चलना भी बोले जिसमें 72 छेद । शहर के एक तथाकथित चमड़े का जहाज चलाने वाले पत्रकार महोदय आजकल परिवहन विभाग की पुरानी व्यवस्था बंद होने से बड़े परेशान है उनकी परेशानी का सबब तो ये है कि वो सोते में जागते में बस किसी न किसी तरह से परिवहन विभाग की नई नीति को कटघरे में रख रहे है और रखे भी क्यों ना इस बुढ़ापे में लाखों की उगाही जो बन्द हो गई है । शुरूमे खबरों के जबाब मिलने से घबराये पत्रकार महोदय अब आएं-बाएं खबरे लिख रहे है और तो और अब उसी माफिया का विरोध करने लगे हैं जिसकी गोद में ये फलेफुले हैं अब जब उम्र के इस पड़ाव में इस तरह का झटका लगता है तो अक्सर दिमाग हिल ही जाता है और आदमी अनापशनाप गाने ही लगता है और उसपर पत्रकारिता वाला कीड़ा हो तो वो कुछ ज्यादा ही बिलबिलाता है अब भला वो ऐसी स्तिथि में यह कैसे समझे कि जो खबर उन्होंने लिखी है वो उनके ही लोगो के लिए उल्टी पड़ रही है । अब इन चमड़े के जहाज वाले पत्रकारों को समझ जाना चाहिए कि उनका वक्त चला गया है और उनकी पुरानी व्यवस्था लागू करने की मुहिम मुख्यमंत्री मोहन यादव के रहते तो सफल नही हो पाएगी । इसलिए जो ये शब्द बार बार दोहराते है कि “मैंने तो परिवहन विभाग छोड़ दिया ” उन्हें विभाग से मोह भी त्याग देना चाहिए । पर जिस विभाग में व्यक्ति रिटायर हो कर भी विभाग की मलाई चाटने का मोह नही छोड़ पता तो ये दल्ले पत्रकार क्या विभाग छोड़ेंगे इसलिए इन्हें थोड़े थोड़े समय में विभाग की याद आती रहती है खैर हमे क्या वो विभाग छोड़े या रखें, हम तो बस बिकी कलाम की पोल खोलते रहेंगे

*खबरनवीसों की खबर में है पोल*
कुछ खबरों के माध्यम से खबरनवीस ये बताने का प्रयास कर रहे है कि नई नीति लागू करने के लिए विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ ही नही है पर वो ये बताना भूल गए कि उनके चाहते निरीक्षक जो विभाग के साथ असहयोग बनाये हुए हैं उनका क्या और उन्होंने ये भी नही बताया कि पूर्व में इतने कम स्टाफ के बाबजूद भी काम कैसे चल रहा था इसे कहते है आधा सच बताने वाली पत्रकारिता जो समाज के लिए बड़ी खतरनाक है। देश की लाइफ लाइन कहा जाने वाला ट्रंस्पोर्टर को भी अपनी खबर के माध्यम से बदनाम किया जा रहा है सूत्रों की माने तो ये भी इसलिए है कि ये दल्ले पत्रकार कुछ ट्रांसपोर्टरों से भी ट्रक पास कराने के एवज में मोटा माल लेते थे । जब कोई निम्नता की हर हद पार कर नियम कानून को ताक पर रख कर कोइ काम करता है तो वही काम उसकी पोल खोल देता है एक खबर में सिंडिकेट के मेंबर पत्रकार ने जब यह बताया कि कुछ निरीक्षकों ने एक पत्रकार द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका लगाने की तैयारी कर ली है तो वो इसके दूसरे पहलू का अघोषित समर्थन करने से नही बच पाए कि यह सब कुछ रसूखदार निरीक्षक और उनके पत्रकार साथियों के गठजोड़ वाले सिंडिकेट के इशारे पर हो रहा है जिसका उल्लेख खुलासा डॉट कॉम अपनी खबरों में पूर्व में करता रहा है यही वो सिंडिकेट हैं जो नई नीति लागू कराने में मुख्य रोढ़ा है इसलिए कहते है सच को छुपाना कठिन है वो झूठ के पर्दे से भी झांक झांक कर देखता है।

  1. *_दल्ले पत्रकार ने नही छोडा गरीब पत्रकारों की मौत का भी पैसा खाया चमडी के दलाल ने..
    सूत्र तो बताते है की कोरोना काल में ग्वालियर के करीब 2-3 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पडा था उन पत्रकारों के सिकंदरा एंव मुरैना परिवहन चैक पोस्ट से हर माह करीब 10-15 हजार प्रति व्यक्ति विग्यापन की रकम मिलती थी और यह रकम उन्हे शहर का एक भिकारी गुलाम हुस्न की चमडी का सोदागर दल्ला पत्रकार द्वारा दी जाती थी लेकिन जब उन पत्रकारों की म्रत्यू हो गइ थी जिसके बाद उन म्रतक पत्रकारों का मिलने बाला पैसा नियम से उनके परिजनों को मिलना था लेकिन एक दल्ले भिकारी पत्रकार ने ऐसा ना करते हुये उनके पैसे की दारू पी गया लेकिन जब बाद में पोल खुली तो पता लगा की ग्वालियर शहर में इस प्रकार के दल्ले पत्रकार भी मौजूद है ।

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